सरकारी टीचर को पढ़ाने कब दोगे ? राम विलास जांगिड़ जी का व्यंगात्मक लेख जरूर पढ़ें...
व्यक्तित्व विकास के लिए आधारभूत तत्व शिक्षा है। शिक्षा ही ऐसा बीज रूप है, जिससे स्वस्थ नागरिक स्वस्थ वृक्ष में बदल सकता है। शिक्षा से ही देश की दशा-दिशा सार्थक रूप ले लेती है। विश्व रूपांतरण का एकमात्र आधार है शिक्षा । शिक्षा के बारे में ऐसे विचारित, ऐसे तथ्य अब मात्र स्तुति गायन बन चुके हैं। शिक्षा का मूल आधार शिक्षक का कहीं अस्तित्व दिखाई नहीं देता। सरकारी शिक्षक पढ़ाने के अलावा दुनिया भर के सब काम करते हैं। सरकारी स्कूलों में गरीबों, दलितों, कमजोर तबके से आने वाले विद्यार्थी पढ़ते हैं, जो पढ़ाई के बहाने केवल स्कूल के चक्कर काटने के लिए मजबूर हैं। अधिकांश विद्यालयों में शिक्षक नहीं हैं। जहां कहीं भी आधे-अधूरे शिक्षक हैं, वे स्कूलों में तो हैं, लेकिन कक्षाओं में हरगिज नहीं होते। स्कूल के किसी कमरे में बैठकर या तो ऑफलाइन ट्रेनिंग ले रहे हैं, या फिर ऑनलाइन पाठ्यक्रम का हिस्सा बन रहे हैं। किसी अन्य कक्ष में बैठकर फ्री में बांटी जाने वाली साइकिल, किताब, कॉपी, ड्रेस, बैग, पेन, पेंसिल, रबर, दरी, दूध, रोटी आदि का हिसाब- किताब दे रहे हैं। एक ही हिसाब को 10-10 बार अलग-अलग ढंग से बना-बना कर डिजिटल दुनिया में उछाल रहे हैं। किसी रैली के लिए बच्चों को इकट्ठा कर रहे हैं। किसी मेले-उत्सव के लिए अधकचरा सा आयोजन कर रहे हैं। बच्चे शिक्षक के इंतजार में कक्षाओं की दीवारों से भिड़ रहे हैं, दरी-पट्टियां फाड़-फाड़ कर हवा में उछाल रहे हैं, या मिट्टी फांक रहे हैं।
कहीं सरकारी शिक्षक स्वास्थ्य विभाग का ब्रांड एंबेसेडर बनकर इस स्कूल से उस स्कूल तक स्वास्थ्य चेतना जगाने का कार्य कर रहा है। हेल्थ प्रमोशनल गतिविधियों के लिए नाच-गान कर रहा है। कहीं शिक्षक सामाजिक अधिकारिता विभाग द्वारा जारी की गई। सामाजिक न्याय की योजनाओं की पट्टी पढ़ाने के लिए ग्रामीण जनों के बीच घूम रहा है। पंचायत राज के कार्यों को पूरा करने के लिए राशन कार्ड, पट्टा, पेंशन, पालनहार, समाज उत्थान जैसी योजनाओं के फार्म भरवा रहा है। कहीं चुनाव की डूंडी पीट रहा है, तो कहीं नशा • उन्मूलन कार्यक्रम के लिए सर्वे कर रहा है। सरकारी शिक्षक प्राइवेट विद्यालयों में होने वाली बोर्ड की परीक्षाओं में लंबे-लंबे समय तक अपनी ड्यूटियां दे रहा है। विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में पर्यवेक्षक के रूप में कार्य कर रहा है। कई भर्ती कार्यक्रमों में अपनी सेवाएं दे रहा है। शिक्षक स्कूल से बाहर निकल कर कहीं पानी बचाने का सबक सिखा रहा है, तो कहीं समाज जागरण के लिए रैली निकलवा रहा है। मेलों में अपनी ड्यूटी दे रहा है। शिक्षक हर एक सरकारी योजना को पूरा करने के लिए गांव-ढाणी, शहर-जिला चक्कर काट रहा है।
सब कुछ कर रहा है, बेचारा टीचर! लेकिन पढ़ा ही नहीं रहा है। शिक्षक का विद्यार्थियों के साथ कक्षा-कक्ष में आमना-सामना नहीं हो रहा है। वह अपने ट्रांसफर से भयग्रस्त है। पढ़ाने के अलावा शेष कार्यों से तनावग्रस्त है। शिक्षक राजनीतिक मोहरा बना हुआ है। शिक्षा राजनीतिक स्वार्थ की धुरी बनी हुई है। शिक्षा अधिकारियों से लेकर शिक्षक तक सब ऐसे जंजाल में फंस गए हैं, जहां शिक्षा का पढ़ने-लिखने से कोई भी संबंध कहीं दिखाई नहीं दे रहा है । सब जानते हैं कि स्कूलों में पढ़ाई- लिखाई का कोई काम नहीं किया जा रहा है, फिर भी पढ़ाने लिखाने का ढोंग रचा जा रहा है। सब कुछ वर्चुअल, सब कुछ ऑनलाइन, सब कुछ कागजों के भीतर ही शिक्षा का करतब दिखाया जा रहा है। सब हुआ जा रहा है। बस शिक्षक को पढ़ाने नहीं दिया जा रहा है।
राम विलास जांगिड़ |