प्रमुख सचिव बेसिक शिक्षा दीपक कुमार के अनुसार शिक्षामित्रों की संविदा आधारित सेवाएं उनकी 60 वर्ष की आयु प्राप्त करने के दिन को स्वतः समाप्त माने जाने का निर्णय लिया गया है।
उन्होंने कहा है कि बेसिक शिक्षा परिषद के प्राथमिक विद्यालयों के संबंध में शिक्षामित्र योजना क्रियान्वयन से संबंधित पूर्व में जारी शासनादेशों को इस सीमा तक संशोधित समझा जाए।
वर्ष 1999 में नियमित शिक्षकों की कमी को देखते हुए प्राथमिक स्कूलों में संविदा पर शिक्षामित्रों को तैनाती की गई थी। उस दौरान उत्तर प्रदेश के परिषदीय विद्यालयों की स्थिति इतनी अधिक दयनीय हो गई थी कि बच्चे स्कूलों में ना के बराबर आने लगे थे। उसी दौरान शिक्षामित्र योजना को उत्तर प्रदेश सरकार के द्वारा असली जामा पहनाया गया था।
इन शिक्षामित्र अध्यापकों ने अपनी ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा के बल पर बेसिक स्कूलों को फर्श से अर्श तक पहुंचाया था लेकिन आज इनकी दशा को सुधारने तथा इनके हितों की चिंता किसी को नहीं है। वर्तमान में इस समय इनकी कुल संख्या 1.46 लाख के करीब है।
समय-समय पर इनका मानदेय तब बढ़ाया गया इन्होंने अपने संघर्षों के दम पर अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ी और वह भी बहुत सम्मानजनक मानदेय कभी नहीं दिया गया। पहली बार समाजवादी सरकार में 2014 में ट्रेनिंग आदि के माध्यम से पहले बैच के मित्रों को समायोजित भी किया गया। हालांकि बाद में सुप्रीम कोर्ट से आदेश के बाद इनका समायोजन निरस्त कर दोबारा मानदेय पर ही कार्य लिया जाने लगा।
शिक्षामित्रों को 11 माह का मानदेय दिया जाता है और हर साल विभाग द्वारा नवीनीकरण किया जाता है। वर्तमान में शिक्षामित्र 10 हजार रुपये प्रतिमाह मानदेय पा रहे हैं।
प्रमुख सचिव बेसिक शिक्षा का संविदा पर कार्यरत शिक्षामित्रों के संविदा पर कार्य करने की अधिकतम आयु निर्धारण के संबंध में आदेश देखें👇