Tuesday 14 February 2023

पदोन्नति के निर्णय के बाद प्रकरण दर्ज होना पदोन्नति में बाधक नहीं है।

पदोन्नति के निर्णय के बाद अपराधिक प्रकरण दर्ज होना पदोन्नति में बाधक नहीं है।
लखनऊ/प्रयागराज, विधि संवाददाता। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि अगर किसी कर्मचारी की पदोन्नति पर फैसला आने के बाद उसके खिलाफ विभागीय या आपराधिक कार्रवाई की जाती है तो उसके पदोन्नति आदेश पर कोई असर नहीं पड़ेगा.  कोर्ट ने कहा कि पदोन्नति पर फैसला हो जाने के बाद कर्मचारी के मामले को इस आधार पर सीलबंद लिफाफे में नहीं रखा जा सकता है कि उसके खिलाफ विभागीय या आपराधिक कार्यवाही बाद में शुरू की गई थी.  जस्टिस जसप्रीत सिंह ने नोएडा में तैनात तहसीलदार रणबीर सिंह की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया है.
याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता अनूप त्रिवेदी ने कहा कि याचिकाकर्ता को 1996 में नायब तहसीलदार के पद पर नियुक्त किया गया था. उनके अच्छे सेवा रिकॉर्ड के कारण उन्हें 2013 में तहसीलदार के पद पर पदोन्नत किया गया था. 2018 में डिप्टी कलेक्टर के पद पर पदोन्नति के लिए गठित, एक पदोन्नति समिति बनाई गई थी. जिसमे याचिकाकर्ता के नाम पर भी विचार किया गया।  याचिकाकर्ता का नाम पदोन्नति सूची में शामिल किया गया था।  लेकिन जब रिजल्ट निकला तो उसका नाम सूची में नहीं था।  पूछताछ करने पर पता चला कि याचिकाकर्ता को विभागीय कार्रवाई के तहत निलंबित किए जाने के कारण उसकी प्रोन्नति का मामला बंद लिफाफे में रखा गया है.
याचिकाकर्ता के खिलाफ नोएडा विकास प्राधिकरण के लिए जमीन की खरीद-फरोख्त में धांधली करने का भी मामला दर्ज किया गया है. जिस पर सीबीआई ने अभियोजन स्वीकृति प्राप्त कर ली है और मामले की सुनवाई अभी लंबित है। जिसके जल्द पूरा होने की फिलहाल उम्मीद नहीं है।
वरिष्ठ अधिवक्ता का तर्क था कि विभागीय पदोन्नति पर विचार करते हुए उनके खिलाफ कोई आरोप पत्र नहीं दिया गया था और न ही उनके खिलाफ उस समय कोई आपराधिक मामला लंबित था. इसलिए उनके मामले को सीलबंद लिफाफे में रखने का कोई औचित्य नहीं है। विभागीय प्रोन्नति समिति की बैठक में याचिकाकर्ता की प्रोन्नति पर निर्णय के बाद आरोप पत्र दाखिल करने से उसकी प्रोन्नति पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्णीत भारत संघ बनाम केवी जानकी रमन मामले का उदाहरण देते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा कि पदोन्नति पर विचार किए जाने के बाद मामले को सीलबंद कवर में रखने का कोई औचित्य नहीं है। कोर्ट ने याचिकाकर्ता द्वारा दिए गए तर्कों को स्वीकार करते हुए याचिकाकर्ता की पदोन्नति पर निर्णय, विभागीय अधिकारियों को जल्द से जल्द लेने का आदेश दिया है.

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